• ललित सुरजन की कलम से- त्रिपुरा के बाद?

    'एक विहंगम दृष्टि डालें तो हमें समझ आता है कि उत्तर-पूर्व के किसी भी प्रांत में भारतीय जनता पार्टी की मूलरूप से कोई प्रभावी स्थिति नहीं है

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    'एक विहंगम दृष्टि डालें तो हमें समझ आता है कि उत्तर-पूर्व के किसी भी प्रांत में भारतीय जनता पार्टी की मूलरूप से कोई प्रभावी स्थिति नहीं है। वह जिन राज्यों में सत्तारूढ़ है वहां उसने अधिकतर जोड़-तोड़ से सत्ता हासिल की है। सबसे पहले असम में हिमंत विश्व शर्मा जैसे अवसरवादी कांग्रेसी नेता को उसने तोड़ लिया। शर्मा जोड़-तोड़ में अवश्य माहिर होंगे, लेकिन उसकी भी कोई सीमा होती है।

    अरुणाचल में भाजपा ने जो खेल किया उसकी परिणति एक पूर्व मुख्यमंत्री की आत्महत्या में हुई। अरुणाचल और मणिपुर दोनों में सत्तालोलुप राजनेता ही भाजपा के साथ जुड़े। यही स्थिति नगालैण्ड, त्रिपुरा और मेघालय में दिखाई दे रही है। इसके परिणाम दीर्घकाल में अच्छे नहीं होंगे।'

    'नरेन्द्र मोदी और अमित शाह के शब्दकोष में राजनैतिक शुचिता जैसी कोई संज्ञा नहीं है। आप पिछली सरकारों को चाहे जितना कोसते रहें, लेकिन स्वयं आपने क्या किया है, इसके बारे में जनता आज नहीं तो कल सवाल अवश्य पूछेगी।'

    (देशबंधु में 08 मार्च 2018 को प्रकाशित)
    https://lalitsurjan.blogspot.com/2018/03/blog-post.html

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